भगत सिंह देश के लिए सबसे कम उम्र वाले स्वतंत्रता सेनानी कहलाये जाते है। अंग्रेज़ों के अत्याचार से तो काफी सारे लोग परेशान थे लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी की वे अंग्रेज़ों के खिलाफ खड़े हो सके। भगत सिंह ही ऐसे वीर पुरुष थे जिन्होंने न केवल अंग्रेज़ों का बहिष्कार किया बल्कि भारत की आज़ादी में अपना पूर्ण योगदान दिया।
दूसरी तरफ गाँधी जी और जवाहर लाल नेहरू जैसे लोग भी देश की आज़ादी के जिम्मेदार थे। लेकिन ये लोग कई जगह अंग्रेज़ों का समर्थन करते भी नजर आए। और शायद इसीलिए सिर्फ भगत सिंह को ही फांसी दी गयी। उन दिनों जवाहर लाल नेहरू भी एक बुद्धिमान वकील और प्रसिद्ध नेता के रूप में जाने जाते थे। वे चाहते तो शहीद भगत सिंह की फांसी को रोक सकते थे।
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भगत सिंह बचपन से ही बहादुर, निडर और देशप्रेमी थे। कालेज में भी वे एक अच्छे अभिनेता के रूप में जाने जाते थे। जब भगत सिंह के माता पिता ने उनकी शादी की योजना बनाई तब भगत सिंह घर से भाग कर कानपुर चले गए थे। भागते हुए भगत सिंह ने अपने माता पिता से कहा कि सब आज़ादी ही मेरी दुल्हन बनेगी। आइए अब जानते है भगत सिंह कैसे शहीद भगत सिंह बने।
History of Bhagat Singh in Hindi
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के एक गाओ बंगा में हुआ। पंजाब का यह गाओ वर्तमान के पाकिस्तान में स्थित है। भगत सिंह के जन्म के समय पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह जेल से रिहा हुए थे। आप ऐसे समझ सकते है भगत सिंह से पहले उनके परिवार ने भी अंग्रेज़ों का पूरा विरोध किया था।
भगत सिंह ने अपनी पढाई आर्य समाज के संस्था दयानन्द वैदिक हाई स्कूल से की। वे बाकी लोगों की तरह ब्रिटिश स्कूल नहीं गए। भगत सिंह को अंग्रेज़ों द्वारा किसी भी तरह की सुविधाएं पसंद नहीं थी। वे बचपन से ही अंग्रेज़ों का बहिष्कार करते थे।
भगत सिंह हिंदी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा जानते थे, साथ ही भगत सिंह एक अच्छे लेखक भी थे। भगत सिंह को फ़िल्में देखना और रसगुल्ले खाना बहुत पसंद था। वे अकसर मौका मिलने पर राज गुरु और यश पाल के साथ फ़िल्में देखने चले जाते थे। भगत सिंह को चार्ली चैपलिन की फ़िल्में बहुत पसंद थी।
जलिया वाला बाग़ हत्या कांड
13 अप्रैल 1919 में हुए जलिया वाला बाग़ हत्या कांड में हज़ारों हिन्दुओं की मौत देख कर भगत सिंह को बहुत गुस्सा आया। उस समय वे सिर्फ 12 साल के थे, तभी उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ हथियार उठा लिए। वे गाँधी जी पक्ष में तो थे लेकिन उनके कुछ न करने से नाराज़ भी थे। उनका मानना था कि गाँधी जी भारत को जल्दी आज़ाद करवा सकते थे लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे थे।
असहयोग आंदोलन
1 अगस्त 1920 में महात्मा गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का मकसद ब्रिटिश सरकार के विरोध में सभी सरकारी सेवाओं का बहिष्कार करना था। उनका कहना था कि ऐसा करने पर ब्रिटिश सरकार कमजोर पड़ जाएगी और वे भारत को छोड़ कर चले जायेंगे। भगत सिंह और उनके परिवार गाँधी जी को सहयोग करने लगे। बहुत कम उम्र में ही भगत सिंह ने गाँधी जी इस आंदोलन से जुड़ गए और ब्रिटिश सरकर के खिलाफ पूरी तरह से खड़े हो गए।
चौरी चौरा आंदोलन
4 फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले के चौरी चौरा कस्बे में आंदोलन कर रहे कुछ भारतियों ने एक पुलिस स्टेशन को जला दिया। जिस में थानेदार सहित 21 हवलदारों की जान चली गयी। इस घटना से गाँधी जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया।
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गाँधी जी हमेशा से हिंसा के खिलाफ थे। वे चाहते थे कि भारत को बिना किसी नुकसान के आज़ाद कराया जाए। लेकिन भगत सिंह भारत को आज़ाद कराने के लिए किसी भी रास्ते पर जा सकते थे। गाँधी जी के इस निर्णय से भगत सिंह को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने अहिंसा की जगह हिंसा का रास्ता अपना लिया। इसके बाद भगत सिंह कई आंदोलनों से जुड़े। भगत सिंह का साथ देने वाले चंद्र शेखर आज़ाद, राज गुरु और सुखदेव भी थे।
भारतीय नौजवानों पर भगत सिंह का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। सैकड़ों नौजवान अब भगत सिंह के साथ हो चुके थे। भगत सिंह का नारा 'ईंट का जवाब पत्थर से दे कर अंग्रेज़ों को भगाना' बन गया था। भगत सिंह के इस काम से नाराज अंग्रेज़ों ने भगत सिंह पर झूठा आरोप लगाते हुए उन्हें मई 1927 में गिरफ्तार कर लिया। आरोप यह था कि भगत सिंह 1926 के लाहौर बम धमाके में शामिल थे। जेल में डालने के लगभग 1 महीने बाद भगत सिंह को जमानत पर छोड़ दिया गया।
Simon Commision
30 अक्तूबर 1928 में भगत सिंह ने लाहौर में Simon Commission के विरुद्ध हो रहे विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इस प्रदर्शन में पुलिस द्वारा लाठी चार्ज में लाला राजपत राय गंभीर रूप से घायल हुए। इन्हीं चोटों की वजह से लाला राजपत राय ने 19 नवंबर 1928 को दम तोड़ दिया। लाला राजपत राय का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने 17 दिसंबर 1928 को राज गुरु और चंद्र शेखर आज़ाद के साथ मिल कर असिस्टेंट सुप्रीडेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस पर हमला कर दिया।
इस हमले में सौंडर्स (ब्रिटिश सिपाही) को गोली लगने से मौत हो गयी। इस घटना के बाद भगत सिंह ने अपने बाल और दाढ़ी कटवा दिया ताकि उनको कोई पहचान न पाए। गिरफ़्तारी से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया।
मजदूर विरोधी बिल
8 अप्रेल 1929 को भगत सिंह अपने दोस्त बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में बम फेंके। उस समय दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में अंग्रेज़ों द्वारा मजदूर विरोधी बिल पास किया जा रहा था। इस बिल से गरीब भारतीयों को बहुत नुकसान होने वाला था। भगत सिंह नहीं चाहते थे कि यह बिल पास हो, इसलिए असेंबली के लोगों को डराने व बिल रद्द कराने के मकसद से बम फेंके।
बम फेंकने के तुरंत बाद भगत सिंह और उनके दोस्त बटुकेश्वर दत्त ने 'इंकलाब ज़िंदाबाद' के नारे लगाते हुए खुद को गिरफ्तार करवा लिया। वे चाहते थे कि उनकी इस गिरफ़्तारी से देश के बाकी युवाओं में स्वतंत्रता की भावना पैदा हो।
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जब भगत सिंह को जेल में रखा गया तब भगत सिंह ने जेल में भी हिन्दू और अंग्रेज़ों के बीच भेदभाव को देखा। जहाँ हिन्दू कैदियों को पुराने फटे कपड़े दिए जाते थे वहीं अंग्रेजी कैदियों को नए और साफ सुथरे कपडे दिए जाते थे। हिन्दुओं के लिए ख़राब और बासी खाना होता था वहीं अंग्रेजी कैदियों के लिए अच्छे और ताजे खाने का प्रबंध किया जाता था।
भगत सिंह चाहते थे की कम से कम जेल में तो भेदभाव न किया जाए। इसके लिए भगत सिंह ने खाना बंद कर दिया था। भगत सिंह का भूक हड़ताल तुड़वाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह को बहुत सताया, लेकिन भगत सिंह अपने जगह अड़े रहे। भगत सिंह के इस भूख हड़ताल से जेल के बाकी हिन्दुओं की हिम्मत बढ़ने लगी थी।
इसके बाद भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु को लाहौर जेल में भेज दिया गया। लेकिन वहां भी इन तीनों का भूख हड़ताल जारी रहा। इस भूख हड़ताल से भगत सिंह के मित्र जितेंद्र नाथ दास ने दम तोड़ दिया। क्युकी उन्होंने लगभग दो महीनों से कुछ नहीं खाया था। भूख हड़ताल के कारण भगत सिंह का वजन भी 10 किलो कम हो गया था। 116 दिन के भूख हड़ताल के बाद ब्रिटिश सरकार को भगत सिंह की बात माननी पड़ी। और जेल के अंदर हो रहे भेदभाव को ख़त्म करना पड़ा।
26 अगस्त 1930 को अदालत ने भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को सरकारी अफसरों पर बम फेंकने के कारण उन्हें फांसी की सजा सुना दी। भगत सिंह और उनके दोनों साथियों पर भारतीय दंड संहिता के अनुसार सरकारी कर्मचारी पर हमले के लिए 129, हत्या के लिए 302 और गैर क़ानूनी हथियार रखने के लिए धारा 4 और 6 लगाई गई। साथ ही उनके साथियों पर साजिश में साथ देने के लिए धारा 120 लगाई गई। इसके बाद भी भगत सिंह को माफ़ी मांगने का मौका भी मिला लेकिन उन्होंने माफ़ी मांगने से मना कर दिया।
23 मार्च 1931 शाम 7 बज के 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके 2 दोस्त राज गुरु और सुख देव को फांसी पर लटका दिया गया। वैसे अदालत ने फांसी का दिन 24 तारीख का रखा था। लेकिन भगत सिंह के फांसी के लिए हिन्दू जनताओं में बहुत आक्रोश था। जिस वजह से भगत सिंह और उनके दोनों साथियों को एक दिन पहले ही फांसी देने का सुनिश्चित किया।
फांसी के समय भगत सिंह और उनके दोनों साथी राजगुरु और सुखदेव ख़ुशी से इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। उन तीनों को बेहद ख़ुशी थी कि देश के लिए आज वे शहीद होने जा रहे है। शाम 7 बज कर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गयी।
फांसी के वक्त भगत सिंह सिर्फ 23 साल 5 महीने और 23 दिन के थे। इतने कम उम्र में देश के प्रति अपनी जान गवाने वाले वीर पुरुषों के नाम के आगे शहीद शब्द को जोड़ दिया गया। और तब से ही भगत सिंह को शहीद भगत सिंह कहा जाता है। उनके साथ राजगुरु और सुखदेव भी हमेशा के लिए अमर हो गए।
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फांसी के बाद तीनों की लाश को जेल के पिछले दरवाजे से बाहर ले जाया गया। जनताओं के गुस्से की वजह से उन्हें सामने में मुख्य दरवाजे से बहार नहीं निकाला गया। जेल से बाहर निकलने से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने तीनों के पार्थिव शरीर को कई टुकड़ों में काटा और बोरी में भर कर ले गए।
ब्रिटिश सरकार द्वारा शरीर के उन टुकड़ों को फ़िरोज़पुर ले जा कर जलाया जा रहा था। तभी स्थानीय निवासियों को नजदीक आते देख जल्दी से अधजले शरीर के टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंक कर अंग्रेज़ वहां से भाग गए। फिर स्थानीय निवासियों ने सभी टुकड़ों को फिर से इकठ्ठा किया और विधि अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया।
ये बात तो पक्की है। अगर गाँधी जी और जवाहरलाल नेहरू जी न होते तो शायद भारत कुछ समय पहले ही आज़ाद हो चूका होता। क्युकी भगत सिंह ने अकेले की पुरे ब्रिटिश सरकार के नाक में दम कर दिया था। भगत सिंह ने अकेले ही अनगिनत भारतीयों के दिल में भी आज़ादी की आग लगा चुके थे।