सबसे शक्तिशाली होने के बाद भी बरबरीक (खाटू श्याम बाबा जी) महाभारत ही लड़ाई नहीं लड़ सके। लेकिन उन्होंने महाभारत के युद्ध को शुरू से लेकर अंत तक जरूर देखा था। खाटू श्याम बाबा जी का इतिहास बहुत ही दिलचस्प और लोकप्रिय है। और इसीलिए आज मैं आपको खाटू श्याम बाबा जी का पूरा इतिहास बताने वाली हूँ।
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खाटू श्याम बाबा जी का मुख्य मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। रोजाना हज़ारों श्रद्धालु इनके दर्शन करने के लिए आते है। कहा जाता है कि इनसे मांगी गई मन्नत हमेशा पूरी होती है। वैसे ये लाइन भारत के सभी भगवानों के लिए भी मान्य है। भारत में ऐसी कोई मंदिर नहीं है जहाँ मन्नत मांगे से पूरी न होती हो।
खाटू श्याम बाबा जी कौन थे ?
खाटू श्याम बाबा जी का असली नाम बरबरीक था। यह वीर योद्धा भीम के सगे पोता थे। दरसल, जब कौरवों ने पांडवों को बेघर कर दिया था तब पांचों पांडव अपनी माँ कुंती और पत्नी द्रोपदी के साथ जंगल में रहने आये थे। तब उस जंगल में रहने वाले राक्षस हिडिम्ब उन इंसानों (पांडवों) को अपना भोजन बनाने के लिए अपनी बहन हिडिम्बी को उन पांडवों को लेकर आने के लिए भेजा।
सोए हुए पड़ावों के पास जाने पर हिडिम्बी को भीम से प्रेम हो गया जो सो रहे बाकि लोगों रखवाली कर रहा था और भीम को अपने पति के रूप में चाहने लगी। बहन के घर नहीं पहुँचने पर राक्षस हिडिम्ब अपनी बहन हिडिम्बी की तलाश में निकल गया। बहन हिडिम्बी को भीम से प्रेम की बातें कर देख राक्षस हिडिम्ब को गुस्सा आ गया। राक्षसी हिडिम्बी के अनुरोध से माँ कुंती ने भीम की शादी हिडिम्बी से कर दी।
कुछ दिन बाद हिडिम्बी और भीम को एक पुत्र हुआ। पुत्र के शरीर पर बाल (केश) न होने के कारण पुत्र का नाम घटोत्कच्छ रख दिया। बड़ा होने पर घटोत्कच्छ अपने माँ बाप का घर त्याग कर उत्तर दिशा की तरफ चला गया। साथ ही हिडिम्बा भी पति भीम को छोड़ कर अपने मुख्य स्थान पर चली गयी, जहाँ उसका भाई हिडिम्ब रहता था।
कुछ समय बाद मणिपुर में श्री कृष्ण के कहने पर कामकंटका नाम की लड़की से घटोत्कच्छ का विवाह हो गया। दोनों को एक पुत्र हुआ जिसका नाम बरबरीक रखा गया। बरबरीक ने घोर तपस्या कर सभी देवी देवताओं को प्रसन्न किया और उनसे सभी प्रकार की शक्तियां प्राप्त की। और इस तरह बरबरीक कभी न हारने वाला योद्धा बन गया। बरबरीक को खाटू श्याम का नाम भगवान श्री कृष्ण से मिला था। आइए जानते है इस नाम के पीछे क्या इतिहास है।
खाटू श्याम बाबा जी क्यों लोकप्रिय है ?
खाटू श्याम बाबा जी अपने दिलचस्प इतिहास के कारण बहुत लोकप्रिय है। खाटू श्याम बाबा जी को इतिहास में सबसे बड़ा दानी कहा जाता है। क्युकी इन्होने दान में अपना ही सर काट कर भगवान श्री कृष्ण को दे दिया था। इसी दान पुण्य के कारण भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अमर भी बना दिया था। आइए जानते है इसके पीछे की कहानी को।
जब बरबरीक बेहद ताकतवर हो गया था तब बरबरीक ने महाभारत का युद्ध लड़ने का निर्णय किया। बरबरीक इतना शक्तिशाली था की वह कुछ ही पल में महाभारत की पूरी लड़ाई समाप्त कर सकता था। बरबरीक जैसे ही महाभारत के युद्ध भूमि पर पहुंचा तब भगवान श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण का रूप लेकर उसे रास्ते में ही रोक लिया।
श्री कृष्ण नहीं चाहते थे की बरबरीक इस युद्ध में शामिल हो, क्युकि बरबरीक से दोनों पक्षों की सेनाओं को खतरा था। इसीलिए बरबरीक को अपनी बातों में उलझाने लगे। श्री कृष्ण ने कहा तुम इस युद्ध में हिस्सा लेने लायक नहीं हो। इतना सुनते ही बरबरीक को गुस्सा आ गया और अपनी शक्ति दिखाने को व्याकुल हो उठा।
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भगवान श्री कृष्ण ने कहा अगर तुम अपने सिर्फ तीन बाणों से ही इस पीपल के वृक्ष के सभी पत्तों में छेड़ कर दोगे तब मैं समझ जाऊंगा कि तुम इस युद्ध में शामिल होने के लायक हो। बरबरीक ने श्री कृष्ण को यकीन दिलाने के लिए अपने तीन के बदले एक बाण से ही पीपल के पेड़ के सभी पत्तों में छेड़ कर दिया।
लेकिन इस से पहले पेड़ से गिरे एक पत्ते को श्री कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे छुपा दिया था। जिस कारण बरबरीक का तीर आखिर में श्री कृष्ण के पैरों के पास जाकर रुक गया। बरबरीक समझ गया और बोला "हे ब्राह्मण, एक पत्ता आपके पैरों के नीचे छिपा हुआ है। कृपया अपना पैर हटाएं ताकि मेरा तीर अपने लक्ष्य को भेद सके। मेरा तीर कभी अपने लक्ष्य को भेदे बिना नहीं लौटता।" ये देख कर श्री कृष्ण को बरबरीक की शक्ति का पूरा पता चल गया।
श्री कृष्ण के पूछने पर बरबरीक ने कहा मैं महाभारत की लड़ाई में उसका साथ देने आया हूँ जो निर्बल यानि कमजोर होगा। इतना सुनते ही भगवान श्री कृष्ण को मालूम चल गया की दोनों तरफ की सेनाओं की जान को खतरा है। श्री कृष्ण ने सोचा, जैसे ही ये पांडवों के पक्ष में जायेगा तब कौरवों की सेनाओं को ख़तम कर देगा। और जैसे ही कौरवों की सेनाएं कमजोर पड़ जाएगी वैसे ही ये करवों की सेना की तरफ से युद्ध करने लगेगा। इस तरह बरबरीक दोनों पक्षों की सेनाओं को ख़त्म कर देगा।
श्री कृष्ण ने बहुत ही चतुराई से बरबरीक को अपने बातों में फसाया और बरबरीक को कहा "यदि तुम मेरा एक वर पूरा कर दोगे तब मैं तुम्हे युद्ध में हिस्सा लेने की अनुमति दे दूंगा"। बरबरीक ने कहा "मांगो ब्राह्मण क्या मांगना चाहते हो"। तब श्री कृष्ण ने कहा मुझे तुम्हारा सर दान में देदो। उसके बाद तुम युद्ध में हिस्सा ले सकते हो। ये सुन कर बरबरीक को बहुत दुःख हुआ।
बरबरीक ने कहा "मैं इस युद्ध में हिस्सा लेना चाहता था। लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कर पाउँगा"। फिर बरबरीक ने श्री कृष्ण से कहा मैं आपको अपना सर दान में दे दूंगा लेकिन मैं इस युद्ध को होते हुए देखना चाहता हूँ। इतना कहते ही बरबरीक ने अपने दूसरे बाण से अपना सी सर काट लिया और श्री कृष्ण के पैरों के पास गिरा दिया।
भगवान श्री कृष्ण ने उसके सर को उठा कर अमृत की देवी से कह कर उसे अमर बना दिया। और युद्ध भूमि के पास स्थित एक टीले पर स्थापित कर दिया। इस तरह से बरबरीक युद्ध में भाग भी नहीं ले सका और पुरे युद्ध को अपनी आँखों से होते हुए देख भी पाया।
बरबरीक को खाटू श्याम बाबा का नाम कैसे मिला ?
युद्ध में पांडवों की जीत के बाद उन्हें घमंड होने लगा था की उन्होंने सभी कौरव सेना को हरा दिया। पांचों पांडव अपनी अपनी बहादुरी के पुल बांधने लगे। ये सब देख श्री कृष्ण को बहुत अफ़सोस हुआ। और श्री कृष्ण ने पांडवों से कहा "इस पुरे युद्ध को बरबरीक ने अच्छे से देखा है। सिर्फ वही बता सकता है कि सबसे ताकतवर कौन है।
सबसे ताकतवर कौन है ये जानने के लिए पांचों पांडव के साथ भगवान श्री कृष्ण उसी टीले पर पहुँच गए जहाँ बरबरीक के सर को स्थापित किया था। बरबरीक से पूछने पर उसने बताया की "मुझे तो सभी जगह भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र उड़ते हुए ही दिखाई दिए। वास्तव में ये युद्ध भगवान श्री कृष्ण ने ही जिताया है"।
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बरबरीक ने बताया कि इस युद्ध में जीत भी श्री कृष्ण की हुई है और हारे भी श्री कृष्ण ही है। दरसल इस युद्ध में हुए सभी प्रकार की गतिविधि भगवान श्री कृष्ण के अनुमति से ही हुआ है। ये सुन कर सभी पांडवों ने अपना सर शर्म से नीचे कर लिया और भगवान श्री कृष्ण के आगे झुक गए।
बरबरीक के इस वाक्य से श्री कृष्ण बहुत खुश हुए और बर्बरीक को कहा आज से तुम्हारा नाम श्याम है। और लोग तुम्हे श्री खाटू वाले श्याम से नाम से जानेंगे। कलयुग में तुम ही लोगों का कल्याण करोगे और उनकी सारी मनोकामना पूरी करोगे। इतना कहते ही सभी लोग वहां से चले गए। और आज उसी टीले पर श्री खाटू श्याम बाबा जी का मंदिर बन गया जो राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है।
मेरा सवाल
- भीम की उम्र क्या होगी कि जब वह अपने पोते बरबरीक के साथ युद्ध करने वाले थे ?