स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) को सिखों के चौथे गुरु राम दास जी के पुत्र ने 1601 में बनवाया था। दरसल, 1574 में इस तालाब के किनारे गुरु राम दास जी ने अपना डेरा डाला था जिसे लोग राम दास का महल कहते थे। बाद में गुरु राम दास जी ने इस जमीन को खरीद लिया। स्थानीय लोगों ने यहाँ स्थित छोटे से तालाब को खोद कर बड़ा कर दिया। फिर इस जगह को राम दास पुरा के नाम से जाना जाने लगा।

अमृत जैसे पानी वाले इस तालाब के कारण इस नगर को अमृतसर का नाम दे दिया गया। गुरु राम दास जी इस जगह को एक धार्मिक स्थल बनाना चाहते थे। वे चाहते थे की इस तालाब के पास एक विशाल मंदिर का भी निर्माण हो। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। क्युकि केवल दो वर्षों बाद ही गुरु राम दास जी का देहांत हो गया।
बाद में गुरु राम दास जी के पुत्र गुरु गोपाल दास जी ने 1601 में इस मंदिर को बनाया। यह मंदिर तालाब के केंद्र में बनवाया गया। इस मंदिर में गुरु ग्रन्थ साहब की स्थापना की गई और इसे महान तीर्थ स्थल माना जाने लगा। 17वी शताब्दी में इस मंदिर को एक युद्ध के अंतराल काफी नुकसान हुआ। जिसे दुबारा सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया द्वारा बनवाया गया।
स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का इतिहास
19वी शताब्दी में अफगान हमलावरों ने इस मंदिर को फिर नष्ट कर दिया था। फिर पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को फिर से बनाया और मंदिर निचले भाग में सफ़ेद संगमरमर लगवाए और ऊपरी भाग में शुद्ध सोना जड़वा दिया। यहाँ मैं आपको बता देना चाहती हूँ कि मंदिर का ऊपरी भाग पूरी तरह से सोने का नहीं है। दरसल महाराजा रणजीत सिंह ने पहले इस पर ताम्बे से दीवारों को ढका और फिर उस पर सोने की परत चढ़वा दी।
इस मंदिर पर सोना चढ़वाने के लिए लगभग 400 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया था। इसकी चमकदार दीवारों के कारण इसे स्वर्ण मंदिर या Golden Temple कहा जाने लगा। इस चतुर्भुज मंदिर के चारों तरफ दरवाजे बनाए गए जिसका अर्थ था कि गुरु के दर्शन के लिए किसी भी दिशा से लोग यहाँ आ सकते है।

स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के पास ही अकाल कक्ष नाम के एक भवन का भी निर्माण करवाया गया था। अकाल कक्ष का निर्माण सिखों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह ने करवाया था। अकाल कक्ष में एक सिंहासन बनवाया गया जहाँ से सिख धर्म के महत्वपूर्ण उपदेश दिए जाते थे। तभी से इस मंदिर को दरबार साहिब के नाम से भी पुकारा जाने लगा। इस कक्ष में सिख गुरुओं के ऐतिहासिक हथियार संजो कर रखे गए है।
1784 में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के पास 215 कमरे और 18 हॉल वाले एक सराय का निर्माण भी करवाया गया था। यह सराय दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के रुकने के लिए बनवाया गया था। आज भी यह सराय मुफ्त में रोजाना हज़ारों श्रद्धालुओं को पनाह देती है।
दिवाली और स्वर्ण मंदिर का इतिहास
दिवाली का त्यौहार स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। क्युकि स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) को बनाने की शुरुआत भी दिवाली के दिन ही हुई थी। दिवाली के दिन ही सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी ने ऐलान किया था की दिवाली का दिन ऐसा दिन होगा जब लोग अपने गुरुओं का आशीर्वाद पा सकेंगे।
सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी को 1619 में जेल से मिली रिहाई का दिन दिवाली का था। उस दिन स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) को पूरी तरह से दीपकों से जगमगा दिया गया था। सोने के बने स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) को देखने के लिए उस दिन लाखों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। तभी
भगवान श्री राम के दोनों पुत्र भी इसी तालाब के पास रामायण का पाठ करने आए थे। इस तालाब के पानी को बहुत शुद्ध बताया जाता है। गंगा के पानी जितना शुद्ध और पवित्र इस तालाब का पानी भी सभी दुःख दर्द को दूर करता है। कहा जाता है आज भी इसमें एक डुबकी लगाने से सारी बीमारियां भी ठीक हो जाती है।