History of Diwali in Hindi | दिवाली का सम्पूर्ण इतिहास

दिवाली या दीपावली भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है। दिवाली को पहली बार भगवान श्री राम के 14 साल के वनवास की वापसी की ख़ुशी में मनाया गया था।
दिवाली या दीपावली भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है। दिवाली को पहली बार त्रेता युग में भगवान श्री राम के 14 साल के वनवास की वापसी की ख़ुशी में मनाया गया था। और तब से आज तक दिवाली मनाई जाती है। भारत के सभी राज्यों में दिवाली का अलग अलग महत्त्व है। सभी राज्यों में दिवाली की अलग अलग कहानी है। जिसे मैं आज आपको बताउंगी।

बढ़ते समय के साथ लोग दिवाली के महत्त्व को धुंधला रहे है। जिनको थोड़ा बहुत पता भी है तो वह पस इतना ही जानते है कि दिवाली को भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी के कारण मनाया जाता है। लेकिन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दिवाली की अलग अलग मान्यता है।

History of Diwali in Hindi | दिवाली का सम्पूर्ण इतिहास
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दिवाली हिन्दुओं का पवित्र त्यौहार है। यह दिन कार्तिक (October) के महीने में अमावस की रात को आता है। इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार यह दिन आगे पीछे बदलता रहता है। लेकिन हिन्दू कैलेंडर में हमेशा यह दिन फिक्स रहता है। इस दिन लोग अपने घर को सजा कर अमावस के अँधेरे में अनगिनत दीपों को जला कर अपने घर को रौशन करते है।

History of Diwali in Hindi

विश्व की पहली दिवाली त्रेता युग में रामायण काल के आखरी दिनों में मनाया गया। जब माता केकई के कहने पर राम ने 14 सालों के लिए अपना घर त्याग कर वन में रहने चले गए थे। अपने छोटे भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ इन 14 सालों में कई विपदाओं का सामना किया। आपको पता ही होगा कि एक दिन श्री लंका के राजा रावण सीता माता को छल से उठा कर ले गए थे। माता सीता को वापस लाने में ही भगवान श्री राम को सदी का सबसे बड़ा युद्ध लड़ना पड़ा।

14 साल के बाद जब राम अपने भाई लक्षमण और पत्नी सीता के साथ अपने घर अयोध्या वापस लौट रहे थे। तब अयोध्या वासियों को इतनी ख़ुशी हुई कि उनके स्वागत में पूरी अयोध्या को दुल्हन की तरह सजा दिया था। और रात में अमावस के अँधेरे को दूर करने के लिए घी के दीयों से सारा अयोधना जगमगाया गया। ख़ुशी इतनी ज्यादा थी कि पुरे प्रजा में मिठाइयां बटवाई गयी और खुल के जश्न मनाया गया।

दक्षिण भारत में दिवाली का इतिहास

दक्षिण भारत में दिवाली को नरकासुर के वध (मौत) के कारण मनाया जाता है। नरकासुर एक राक्षस था जिसने दक्षिण भारत में बहुत कहर मचा रहा था। नरकासुर ने भगवान इंद्र की माता के सिर का ताज चुरा लिया था। चुराए हुए ताज को वापस लाने के लिए देव इंद्र भगवान विष्णु के पास जाते है और उनसे विनती करने लगते है।

इंद्र की बात सुनते ही भगवान विष्णु स्वर्ग में जाकर नरकासुर को मारने की तैयारी करने लगते है। लेकिन बाद में पता चलता है कि नरकासुर को ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे उनका वध कोई नहीं कर सकता है। छानबीन करने पर यह पता चला कि नरकासुर को सिर्फ उन्ही की माता ही मार सकती है। मैं आपको बता दूँ कि नरकासुर की माता का नाम सत्यभामा था।

History of Diwali in Hindi  दिवाली का सम्पूर्ण इतिहास
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भगवान विष्णु के कहने पर माता सत्यभामा ने अपने पुत्र नरकासुर को मार डाला और इंद्र की माता के सिर का ताज उन्हें लौटा दिया। इस तरह दक्षिण भारत के लोगों ने बुराई पर अच्छाई की जीत की ख़ुशी में दिवाली मनाने लगे। दक्षिण भारत के लोगों के अनुसार दिवाली का मतलब  दीपों से रौशनी से अमावस के अँधेरे मतलब नकारात्मकता, बुराई और असत्य को दूर करना है।

महाभारत के दिवाली का इतिहास

महाभारत का युद्ध जिसे भारत का सबसे बड़ा धर्म युद्ध कहा जाता है। जो कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। इस युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी। इस युद्ध का कारण कौरवों द्वारा अपने ही चचेरे भाइयों पांडवों को घर से बेघर कर देना था। युद्ध जीतने के बाद पांडवों को अपने घर हस्तिनापुर लौटने में लगभग 12 सालों का समय लगा था।

12 साल बाद जब पांचों पांडव अपने घर हस्तिनापुर आये तब वह दिन भी कार्तिक के महीने की अमावस वाली रात थी। अयोध्या वासियों के तरह ही हस्तिनापुर के वासियों ने सारा हस्तिनापुर को सजाया दिया था व अमावस के काले अँधेरे को दूर करने के लिए अनगिनत दीप जलाये। दिवाली मनाने का यह भी एक ठोस कारण माना जाता है। 

दिवाली से कुछ दिन पहले सोना क्यों ख़रीदा जाता है ?

एक गांव में एक राजा था जिसका एक पुत्र भी था। एक ब्राह्मण के ये घोसणा की ये अपने शादी के एक दिन बाद मर जाएगा। ये जानते हुए भी उस राजा ने अपने पुत्र का विवाह कर दिया। और ये बात अपने पुत्र की पत्नी को भी बताई। पत्नी ने तरकीब लगाया और घर का सारा सोना दरवाजे पर रख दिया। साथ ही वह ढेर डीप जला दिए।

History of Diwali in Hindi  दिवाली का सम्पूर्ण इतिहास

रात को जब यमराज सांप के वेश में राजकुमार को लेने आया तो दरवाजे पर रखी दीयों के कारण सोने की चमक से सांप की ऑंखें चौंधिया गयी और सांप (यमराज) वापस चले गए। और इस तरह पत्नी ने अपने पति की जान बचाई। वह यमराज का शुक्रिया करने के लिए एक दीपक और जलाती है जिसे यमादिपक कहा जाता है। इसी कारण दिवाली से कुछ दिन पहले लोग सोना खरीद कर अपने घर लाते है।

सिखों के लिए दिवाली का महत्त्व

साल 1619 में दिवाली के दिन ही सिखों को गुरु हरगोविंद जी की जेल से रिहाई मिली थी। गुरु हरगोविंद के घर वापस आने पर सभी सिखों ने दीपक जला कर जश्न मनाया था। इसीलिए दिवाली सिखों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। सिखों के तीसरे गुरु अमरदास ने यह ऐलान किया था कि दिवाली के दिन वह अपनी गुरुओं का आशीर्वाद पा सकेंगे। व साथ ही दिवाली के दिन ही पंजाब के अमृतसर में स्थित देश का सबसे बड़ा गुरुद्वारे की नीव रखी गयी थी। 

मैंने देखा भारत में किसी भी घटना की अलग अलग कहानियां बताई जाती है। वजह कुछ भी हो लेकिन दिवाली को मूल रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है। आज कल लोग दिवाली में बम पटाखें जला कर भी दिवाली सेलिब्रेट करते है। माना जाता है कि पटाखों की आवाज़ से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

मेरा सवाल
यदि दिवाली भगवान श्री राम के करण मनाया जाता है तो दिवाली पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा क्यों होती है ?
Keerthi History
A History Graduate Who Wants To Tell The Real History Of India That The Education System Has Forgotten!

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